
OMG ! क्या आप यकीन करेंगे कि यह आज से सदियों पहले 1063 ईसवी में बनाया गया था ? (रानी की वाव )
रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण ज़िले में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। यह वाव (सीढ़ियों वाला कुआँ) 64 मीटर लंबा है, लगभग एक हजार साल पुराने इस वाव में सरस्वती नदी का पानी एकत्रित कर निजी कार्यों में इस्तेमाल किया जाता था, सरस्वती नदी के विलुप्त होने के बाद 700 साल तक यह नदी के गाद में दबा रहा, कुछ वर्षों पहले भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे पुनः खोज निकाला । है ना अद्भुत ?
इस चित्र को जुलाई 2018 में RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा ₹100 के नोट पर चित्रित किया गया है तथा 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया।आइए जानें इस इमारत के बारे में कुछ खास बातें।
रानी की वाव का इतिहास (रानी की वाव के बारे में रोचक तथ्य)
इस ऐतिहासिक और अनोखी बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में लगभग सन 1063 में कराया था। राजा भीमदेव को गुजरात के सोलंकी राजवंश का संस्थापक भी माना जाता है। गुजरात के प्राकृतिक भूगर्भीय बदलावों के कारण यह बहुमूल्य धरोहर लगभग 700 सालों तक गाद की परतों के नीचे दबी हुई थी जिसे बाद में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खोजा गया था।
1. इस वाव का निर्माण मुलाराजा के बेटे भीमदेव प्रथम की याद में उनकी विधवा पत्नी उदयमती ने करवाया था। जिसे बाद में करणदेव प्रथम ने पूरा किया।
2. इस वाव का निर्माण मारू-गुर्जरा आर्किटेक्चर स्टाइल में बहुत खूबसूरत तरीके के साथ किया गया है।
3.इस बावड़ी की लंबाई 64 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है।
4. कहा जाता है कि इसकी सीढियों की कतारों की संख्या कभी 7 हुआ करती थी, जिसमें से 2 अब विलुप्त हो चुकी हैं।
5. रानी की वाव में 500 से भी ज्यादा मूर्तिकलाओं का बाखूबी प्रदर्शन किया गया है। इमारत की दीवारों और खंभों पर भगवान विष्णु के अवतार राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि के अवतारों को बहुत खूबसूरती के साथ नकाशा गया है। इमारत में हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े स्कल्पचर है।
6.यह बावड़ी भारत में स्थित सबसे बड़ी बावड़ियो में से एक है, यह लगभग 6 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है।
7.बावड़ी के अन्दर भगवान विष्णु से संबंधित बहुत सी कलाकृतियां और मूर्तियां बनी हुई है। यहां पर भगवान विष्णु के दशावतार के रूप में ही मूर्तियों का निर्माण किया गया है, जिनमे मुख्य रूप से कल्कि, राम, कृष्णा, नरसिम्हा, वामन, वाराही और दूसरे मुख्य अवतार भी शामिल हैं
8. इस वाव में 30 कि.मी लंबी रहस्यमयी सुरंग भी निकलती है, जो पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध के वक्त कर सकता था।
9.साल 1980 में इसे एएसआई ने साफ करके इसका जिम्मा अपने सर पर लिया, सालों से इसमें गाद भरा हुआ था। करीब 50-60 वर्षों पहले यहां पर काफी आयुर्वेदिक पौधे पाए जाते थे, तब इस वाबडी से लोग बीमारियों को दूर करने के लिए पानी लेने आते थे।
10.निश्चित रुप से जब आप रानी-की-वाव से बाहर निकलते हैं, तो आप कुंओं के बारे में पूरी नई जानकारी के साथ लौटते हैं। ये कुंए अंधेरे वाले, गहरे और रहस्यमय नहीं हैं; गुजरात में ये उत्कृष्ट स्मारक हैं। रानी-की-वाव के मामले में यह 11वीं शताब्दी के सोलंकी वंश के कलाकारों की कला का जीता-जागता प्रमाण है।
साल 2001 में इस बावड़ी से 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी दो मूर्तियां चोरी कर ली गईं थी। इनमें एक मूर्ति गणपति की और दूसरी ब्रह्मा-ब्रह्माणि की थी।
प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अधिनियम 1958 के अनुसार यह संपत्ति राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर संरक्षित है, जिसमें 2010 में संशोधन किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को विश्व प्रसिद्ध बावड़ी के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौपी गयी हैं चूंकि यह बावड़ी भूकंप वाले क्षेत्र में स्थित है इसलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को जोखिम के समय की तैयारियों एवं आपदा प्रबंधन को लेकर बहुत सतर्क रहना पड़ता है। इस भव्य बावड़ी की संरचना, इतिहास और कलाकृति को देखते हुये वर्ष 2014 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था। यूनेस्को ने इस बावड़ी को भारत में स्थित सभी बावड़ियों की रानी के खिताब से नवाजा है। साल 2016 में देश की राजधानी दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में इस वाबड़ी को ‘क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस’ के पुरस्कार से नवाजा गया था। 2016 के भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में रानी की वाव को भारत का “सबसे स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान” कहा गया था।
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